सोचा तो था ये, जहाँ को वफ़ा का नया नमूना दूं,
हमनवा कुछ ऐसे मिले, बे-वफ़ा होता गया
कुछ दोस्तों ने दिखाया कमीनगी का मंज़र ऐसा,
कि दोस्ती और कमीनगी में फर्क कम होता गया !
और कुछ ऐसा सुलूक करते गए मुझसे , छोडना तो वाजिब था,
उनके पापों का घड़ा और मेरा दिल भरता गया !
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Jawahar