बड़ी कशिश थी समझने की, कि मेरा अंजाम क्या होगा
तभी याद आया , आग़ाज़ तो हुआ ही नहीं अंजाम क्यूँ होगा
अभी तो नादान हूँ, वक़्त और ज़िन्दगी की राहों में
जिस राज़ को बुज़ुर्ग भी समझ न पाये , उनको क्यूँ खोजूँ
मैं आया था जहां में, किसी की मोहब्बत के वजह से,
अब अपनी वहशत से, जाने कि राह खुद खोजूँ
बहुत जी ली है अपनी ज़िन्दगी, दायरों और हदों में ,
अब ज़िद है की अपनी ही हदों को खुद तोडूँ
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जवाहर